श्री बिल्वमंगल ठाकुर द्वारा रचित यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप की मनोहारी छवि का वर्णन करता है। इसे भक्तों के हृदय में ईश्वर के सगुण रूप के ध्यान को सरल, सजीव और साकार बनाने के उद्देश्य से रचा गया है। इसमें उस अनुपम दृश्य का चित्रण है जब भगवान श्रीकृष्ण बालरूप में वटपत्र पर शयन कर रहे हैं।
करार विन्देन पदार विन्दं, मुख़ार विन्दे विनये शयन्तम
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि -1
यह श्लोक भगवान के बाल स्वरूप का सुंदर चित्रण है, जो उनकी लीला, करुणा, और सर्वव्यापकता को सरलता से समझाता है।
- करार विन्देन पदार विन्दं – भगवान श्रीकृष्ण अपने कोमल हाथों (करार विन्द) से अपने चरण कमलों (पदार विन्द) को छू रहे हैं। यह दृश्य उनकी बाल सुलभ चंचलता और कोमलता को दर्शाता है।
- मुखार विन्दे विनये शयन्तम – उनका मुख कमल के समान कोमल और मनोहारी है। वह विनीत भाव से शयन कर रहे हैं, जो उनके शांत और करुणामय स्वभाव का प्रतीक है।
- वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम – श्रीकृष्ण वट वृक्ष के एक पत्ते पर लेटे हुए हैं। यह छवि उनकी अलौकिकता और सृष्टि के पालनकर्ता स्वरूप का संकेत देती है, जो बालरूप में भी संपूर्ण ब्रह्मांड को संभालने की क्षमता रखते हैं।
- बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि – मैं अपने हृदय से उस बाल मुकुंद का ध्यान करता हूँ, जो सृष्टि के आधार, मोक्ष के दाता, और प्रेम के परम स्वरूप हैं।
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव:
जिह्वे पिबस्वामृतमेत देव:, गोविन्द दामोदर माधवेति-2
- श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी – हे श्रीकृष्ण, आप गोविन्द (गायों के रक्षक), हरे (पापों का हरने वाले), और मुरारी (राक्षस मुर का वध करने वाले) हैं।
- हे नाथ नारायण वासुदेव – हे नाथ, आप नारायण (सर्वशक्तिमान) और वासुदेव (सबके आधार) हैं। आप सभी के संरक्षक और सृष्टि के मूल हैं।
- जिह्वे पिबस्वामृतमेत देव: – हे जीभ, इन दिव्य नामों का पान करो। यह नाम अमृत के समान हैं, जो जीवन को पवित्र और आनंदमय बना देते हैं।
- गोविन्द दामोदर माधवेति – श्रीकृष्ण के नाम गोविन्द (प्राणियों के पोषणकर्ता), दामोदर (कमर पर दाम से बंधे), और माधव (लक्ष्मीपति) का जप करते हुए भक्ति में डूब जाओ।
विक्रेतु कामाखिल गोप कन्या, मुरारी पदार्पित चित्त: वृत्ति:
दध्यादिकं मोहवशाद वोचाद, गोविन्द दामोदर माधवेति-3
यह श्लोक एक सुंदर भक्ति-रस से भरा हुआ है, जिसमें गोपिकाओं के श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम और पूर्ण समर्पण का वर्णन किया गया है। इसका भावार्थ इस प्रकार है:
- “विक्रेतु कामाखिल गोप कन्या”
गोपिकाएँ, जो ब्रज की ग्वाल-बालिकाएँ हैं, अपनी दैनिक गतिविधियों, जैसे दूध, दही और मक्खन बेचने के काम में लगी रहती हैं। वे साधारण बालिकाएँ हैं, परन्तु उनका चित्त मुरारी (श्रीकृष्ण) के चरणों में अर्पित है। उनका व्यापारिक काम केवल बाहरी क्रिया है; उनका मन तो सदैव भगवान में ही रमा रहता है। - “मुरारी पदार्पित चित्त: वृत्ति:”
उनकी चित्तवृत्ति, अर्थात उनके मन की समस्त प्रवृत्तियाँ, केवल श्रीकृष्ण के चरणों में ही लगी रहती हैं। वे सांसारिक गतिविधियाँ तो करती हैं, लेकिन उनका हर कार्य, हर भावना श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित है। यह उनके भक्ति और प्रेम का सर्वोच्च उदाहरण है। - समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति
भगवान के पवित्र नाम समस्त भक्तों के दुख, कष्ट और संताप को दूर करने वाले हैं। जो भी भक्त इन नामों का श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करता है, उसका जीवन शांति और सुख से भर जाता है।
गोपिकाओं के लिए श्रीकृष्ण केवल एक भगवान नहीं हैं, बल्कि उनके सखा, प्रेमी, और आराध्य हैं। वे सांसारिक कर्तव्यों में लिप्त रहते हुए भी, मन और आत्मा से श्रीकृष्ण में पूरी तरह डूबी रहती हैं।
गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा:, सर्वे मिलित्व सम वाप्य योगं
पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम, गोविन्द दामोदर माधवेति-4
इस पंक्ति में गोपिकाओं के आपसी सामंजस्य और उनके सामूहिक भक्ति भाव का चित्रण किया गया है। ब्रज की गोपिकाएँ, हर घर से एकत्र होकर, एकजुटता और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण की आराधना में लीन हो जाती हैं। वे सभी, मिल-जुलकर, अपने मन और भावनाओं को श्रीकृष्ण में एकीकृत कर लेती हैं।
- गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा: सर्वे मिलित्व सम वाप्य योगं – गोपिकाओं का जीवन सांसारिक कार्यों में भले ही बंधा हुआ हो, लेकिन उनका वास्तविक उद्देश्य और आनंद श्रीकृष्ण की सेवा और स्मरण में है। जब वे गृहोपयोगी काम जैसे दूध-दही का वितरण या अन्य घरेलू कार्य करती हैं, तो भी उनका चित्त भगवान में रमा रहता है। यह सामूहिक भक्ति का एक अनुपम उदाहरण है, जहाँ सभी गोपिकाएँ मिलकर अपने प्रेम और भक्ति को साझा करती हैं।
- पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम गोविन्द दामोदर माधवेति
जो भक्त प्रतिदिन श्रीकृष्ण के पवित्र नामों का उच्चारण और पाठ करते हैं, वे पुण्यफल को प्राप्त करते हैं। श्रीकृष्ण के नामों का स्मरण और जप अपने आप में एक महान साधना है, जो आत्मा को शुद्ध करता है और भक्त को दिव्य प्रेम से भर देता है।
जो भक्त नित्य श्रीकृष्ण के इन पवित्र नामों का जप और स्मरण करते हैं, वे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर के प्रेम में लीन हो जाते हैं। इन नामों का जप करते हुए भक्त का मन धीरे-धीरे शुद्ध होता है, और वह आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करता है।
सुखम श्यानम निलये निजेपि, नमाणि विष्णोः प्रवदन्ति मतर्य
ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति -5
यह श्लोक भगवान विष्णु के पवित्र नामों का जप और स्मरण करते हुए भक्तों के अद्भुत आध्यात्मिक आनंद और भक्ति की महिमा को दर्शाता है।
- सुखं श्यानं निलये निजेऽपि
जब भक्त अपने घर या निवास स्थान में आराम से (आसन ग्रहण करके) बैठते हैं, तब भी वे आनंदपूर्वक और सुखपूर्वक भगवान विष्णु का स्मरण करते हैं। भले ही वे विश्राम की अवस्था में हों, लेकिन उनके मन और वाणी में ईश्वर का नाम रहता है। - नमाणि विष्णोः प्रवदन्ति मतर्य
वे भगवान विष्णु के पवित्र नामों का जप और उच्चारण करते रहते हैं। यह नाम-जप उनके लिए न केवल कर्तव्य है, बल्कि आत्मिक आनंद का स्रोत भी है। इस प्रकार, भौतिक अवस्था में रहते हुए भी, वे आध्यात्मिक रूप से भगवान के साथ जुड़े रहते हैं। भगवान विष्णु के नामों का जप और उच्चारण केवल मुख की क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक साधना है जो आत्मा को पवित्र और शुद्ध करती है। “मतर्य” शब्द से संकेत मिलता है कि यह साधना जीवन में हर अवस्था और परिस्थिति में की जा सकती है। - ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति
जो भक्त भगवान के पवित्र नामों—गोविन्द, दामोदर, माधव—का निरंतर जप और स्मरण करते हैं, वे निश्चित रूप से भगवान के स्वरूप में तन्मय हो जाते हैं। उनका मन और आत्मा पूर्ण रूप से श्रीकृष्ण में लीन हो जाता है, और वे सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाते हैं।
इस श्लोक का संदेश सरल है—भगवान विष्णु के पवित्र नामों का स्मरण जीवन को शांति और आनंद से भर देता है। भक्ति का यह मार्ग इतना सरल और सहज है कि इसे हर परिस्थिति में अपनाया जा सकता है।
जिह्वे सदैवम भज सुंदरानी, नमानी कृष्णस्य मनोहरानी
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति-6
यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर और मनमोहक नामों की महिमा का वर्णन करता है। इसमें जीभ (वाणी) को भगवान के नामों के जप और स्मरण में समर्पित करने का आग्रह किया गया है।
- जिह्वे सदैवं भज सुंदरानी
हे जीभ! सदैव श्रीकृष्ण के उन सुंदर नामों का जप और गायन करो, जो अपनी मधुरता और दिव्यता से हृदय को आनंदित करते हैं। ये नाम न केवल उच्चारण में सुखद हैं, बल्कि आत्मा के लिए परम पवित्र और कल्याणकारी भी हैं।
- नमानी कृष्णस्य मनोहरानी
श्रीकृष्ण के वे नाम, जो मनोहर (मन को हरने वाले) हैं, अत्यंत आकर्षक और दिव्य गुणों से भरे हुए हैं। इन नामों के स्मरण से चित्त में शांति, प्रेम और आध्यात्मिक आनंद का संचार होता है।
- समस्त भक्तार्ति विनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति
भगवान के पवित्र नाम समस्त भक्तों के दुख, कष्ट और संताप को दूर करने वाले हैं। जो भी भक्त इन नामों का श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करता है, उसका जीवन शांति और सुख से भर जाता है।
सुखावसाने इदमेव सारम, देखावसाने इदमेव ज्ञेयम
देह: वसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति -7
यह श्लोक जीवन के अंतिम सत्य और सार को प्रकट करता है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि सांसारिक सुख और दुख के अंत में भी जो सबसे महत्वपूर्ण और शाश्वत है, वह है भगवान के नाम और उनकी भक्ति।
- सुखावसाने इदमेव सारम्
संसार के सभी सुखों के समाप्त हो जाने के बाद, यही (भगवान का नाम और उनकी शरण) सबसे बड़ा सार और सत्य है। सांसारिक सुख अस्थायी हैं, लेकिन भगवान के नामों का स्मरण और उनकी भक्ति स्थायी और आत्मा को तृप्त करने वाली है।
- देखावसाने इदमेव ज्ञेयम्
जब जीवन के समस्त दृश्य (सांसारिक जीवन, घटनाएँ, और अनुभव) समाप्त हो जाते हैं, तो यही (ईश्वर का नाम और उनकी कृपा) ज्ञेय है—जानने और स्मरण करने योग्य। मृत्यु के समय भी भगवान का नाम ही आत्मा को मुक्ति और शांति प्रदान करता है।
- देह: वसाने इदमेव जाप्यं
जब यह शरीर (देह) अंत के करीब पहुँचता है, यानी मृत्यु का समय आता है, तब केवल यही जप करने योग्य है—भगवान के पवित्र नाम गोविन्द, दामोदर, और माधव -ईश्वर के सबसे सुंदर और मनोहर नाम हैं, जिनका स्मरण मृत्यु के समय हमें मोक्ष और परम शांति प्रदान करता है।
इस श्लोक का गहरा संदेश यह है कि जीवन की अस्थायी परिस्थितियों के पार भी भगवान का नाम और उनकी भक्ति शाश्वत हैं। जीवन के अंत समय में केवल भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र नामों का जप ही आत्मा के लिए सहारा है। यह नाम जीवन और मृत्यु दोनों में परम शांति और मोक्ष प्रदान करते हैं। इसलिए, जीवनभर भगवान के नामों का स्मरण और जप करना चाहिए ताकि अंत समय में यही नाम हमारी मुक्ति का कारण बन सकें।
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णु:
जिह्वे पिबस्वामृतमेत देव:, गोविन्द दामोदर माधवेति-8
यह श्लोक दर्शाता है कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नाम, जो उनके लीलाओं और स्वरूपों से जुड़े हैं, आत्मा के लिए अमृत समान हैं। जब भक्त इन नामों का जाप करते हैं, तो उनकी जिह्वा (जीभ) भी पावन बन जाती है और उन्हें ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव होने लगता है।
- श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को राधा के प्रियतम (राधावर) और गोकुल के अधिपति (गोकुलेश) के रूप में संबोधित किया गया है। राधा-कृष्ण का प्रेम आध्यात्मिकता का उच्चतम रूप माना जाता है, और गोकुल में भगवान की बाल लीलाएँ भक्तों के हृदय को आनंदित करती हैं।
- गोपाल गोवर्धननाथ विष्णुः
‘गोपाल’ का अर्थ है गौओं की रक्षा करने वाले – यह उनके वात्सल्य और संरक्षण का प्रतीक है। ‘गोवर्धननाथ’ उनके उस रूप को दर्शाता है जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाकर वृन्दावनवासियों की रक्षा की। ‘विष्णु’ शब्द से उनका सर्वव्यापक, रक्षक और पालनकर्ता स्वरूप प्रकट होता है।
- जिह्वे पिब स्वामृतमेतदेवः
यहाँ जिह्वा (जीभ) को संबोधित करके कहा गया है – “हे जिह्वा! यह जो अमृतस्वरूप देवता (भगवान के नाम) हैं, उन्हें पी”। इसका आशय है कि बार-बार इन नामों का उच्चारण करो, क्योंकि वे आत्मा को शुद्ध करने वाले और आनंद देने वाले हैं। यह नाम स्वयं अमृत हैं — नश्वर संसार में यह नाम-जप अमरत्व की अनुभूति कराता है।
- गोविन्द दामोदर माधवेति
‘गोविन्द’ – जो इंद्रियों को आनंद देने वाले हैं,
‘दामोदर’ – जिनका कमर में माता यशोदा ने दाम (रस्सी) से बाँधा था,
‘माधव’ – लक्ष्मीपति और मधु का नाश करने वाले।
इन नामों का निरंतर स्मरण करने से भक्त का हृदय श्रीकृष्णमय हो जाता है, और वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भगवद्भाव में लीन हो जाता है।
जिह्वे रसज्ञे मधुर प्रियत्वम, सत्यम हितं त्वां परमं वदामि
आवरणायथा मधुरक्शराणी, गोविन्द दामोदर माधवेति-9
यह श्लोक श्रीकृष्ण के अमृतमय नामों—गोविन्द, दामोदर, माधव—के जप को न केवल आध्यात्मिक बल्कि भावनात्मक, मधुर और हितकारी अनुभव के रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें जिह्वा को उपदेशात्मक रूप में संबोधित किया गया है कि वह व्यर्थ की बातों और स्वादों में उलझने की बजाय ईश्वर के नामों का रसास्वादन करे।
- जिह्वे रसज्ञे मधुर प्रियत्वम्
हे जिह्वा! तू रस की ज्ञाता है — जो कुछ भी स्वादिष्ट, मधुर और प्रिय है, उसे पहचानने वाली है। पर क्या तूने कभी विचार किया कि सबसे मधुर क्या है? यह केवल भौतिक स्वाद नहीं, बल्कि भगवान के नाम हैं जो आत्मा को भी तृप्त करते हैं।
- सत्यम् हितं त्वां परमं वदामि
मैं तुझसे पूर्ण सत्य, परम हितकारी बात कह रहा हूँ — यह कोई दिखावा या मोहक शब्द नहीं, बल्कि गहन अनुभव से उपजी सच्ची बात है। जो कुछ भी तुझे हितकारी लगे, उससे अधिक हितकर यह है कि तू भगवन्नाम का जाप कर।
- आवरणाय था मधुराक्षराणि
जैसे वस्त्र शरीर को आवृत करते हैं, वैसे ही यह मधुराक्षर — गोविन्द, दामोदर, माधव — जीवात्मा को आवरण प्रदान करते हैं, उसे संसार के ताप और विक्षेप से बचाते हैं। यह नाम आत्मा के लिए सुरक्षा-कवच हैं।
- गोविन्द दामोदर माधवेति
इन तीनों नामों का उल्लेख कर श्लोक यह दर्शाता है कि जो भक्त इन नामों का निरंतर जाप करता है, उसकी जिह्वा वास्तव में मधुर रस की अधिकारी बनती है। ये नाम केवल पुकार नहीं हैं, ये परमात्मा के साक्षात स्वरूप हैं, जिनके स्मरण मात्र से जीवन धन्य हो जाता है।
त्वमेव याचे मम देहि जिह्वे, समगते दंड धरे कृतान्ते
वक्तव्य मेवं मधुरं सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति-10
यह श्लोक विशेष रूप से मरणकाल की भक्ति-स्मृति पर केंद्रित है — जब शरीर छूट रहा होता है और मृत्यु सामने खड़ी होती है। इस समय भगवान के नाम ही जीवन को सार्थक बनाते हैं। नीचे उसी शैली में इसकी व्याख्या दी गई है:
जब प्राणी का जीवन समाप्त होने को होता है, तब उसकी जीभ पर केवल वही शब्द होने चाहिए जो मुक्ति के द्वार खोलते हैं — भगवान के पवित्र नाम। यह श्लोक भक्त की उस प्रार्थना को प्रकट करता है जिसमें वह अपनी ही जिह्वा से विनती करता है कि वह अंतिम समय में भी प्रभु नाम का उच्चारण करे।
- त्वमेव याचे मम देहि जिह्वे
हे मेरी जिह्वा! मैं तुझसे एक ही विनती करता हूँ — कृपया यह वरदान दे कि तू अंतिम क्षणों में भी भगवान का नाम ले सके। यह निवेदन कोई अन्य से नहीं, अपने स्वयं के शरीर के अंग से है, जो प्रायः संसार के स्वाद और वार्तालाप में लीन रहता है।
- समगते दण्डधरे कृतान्ते
जब मृत्यु का देवता — यमराज (दण्डधर) — समीप आ जाएँ, जब कृतान्त (अंत) सामने हो, जब प्राणवायु शरीर छोड़ने लगे — उस समय वेद, शास्त्र, सांसारिक ज्ञान या संबंध कोई सहायता नहीं करते। उस क्षण केवल भगवद् नाम ही रक्षा कर सकते हैं।
- वक्तव्य मेवं मधुरं सुभक्त्या
ऐसे समय में तेरे मुख से मधुर, श्रद्धायुक्त और प्रेमपूर्ण उच्चारण ही होना चाहिए — कोई रोना, चीखना या संसार की बातें नहीं; बस भक्ति से ओतप्रोत प्रभु नाम।
- गोविन्द दामोदर माधवेति
इन तीन नामों में समग्र भगवत्ता है —
- गोविन्द: इन्द्रियों को तृप्त करने वाले, रक्षक
- दामोदर: यशोदा माता द्वारा बाँधने योग्य लीलामय प्रभु
- माधव: लक्ष्मीपति, शाश्वत सुख के दाता
इन नामों का स्मरण ही अंतिम समय में आत्मा का सच्चा संबल है।
🔔 भावार्थ सारांश:
यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि प्रार्थना सिर्फ ईश्वर से नहीं, अपने शरीर और मन से भी करनी चाहिए — कि वह अंतिम समय में भटकने न दें, बल्कि प्रभु के नाम में लगे रहें। जिह्वा को साधना ही मुक्ति का मार्ग है।